Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-20)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:- 


राज के स्वभाव में बदलाव नयना साफ महसूस कर रही थी । कल का चुलबुला राज आजकल धीर गंभीर बन गया था।वह अब पहले की तरह नयना की खिंचाई भी नहीं करता था ।उसने क्या पहन रखा है ,कैसी लग रही है ये बातें पहले वो नोटिस करता था । लेकिन जब से महल के खंडहरों में गया है तब से उदास सा रहने लगा था ।

   अब ये बात नयना भी नहीं जानती थी कि राज को असल में हुआ क्या था ।उसने नयना को कभी इस नज़र से नहीं देखा वो उसे अपने जीवन में एक सच्चे दोस्त की तरह देखता था ।जब वो चंद्रिका का रुप धरे परी से मिला था तो उसका दिल उसकी आंखों में ही अटक कर रह गया था ।वह उसे दूर तक लाल हवेली में जाते हुए देखता रहा ।वह इतनी सुध-बुध खो बैठा था कि उसे ये भी याद नहीं रहा कि वो हवेली तो सालों से वीरान पड़ी है।एक कशिश सी थी उसकी आंखों में जैसे वो राज को कभी से अपने पास बुलाना चाहती थी। ऐसा लगता था जैसे वह उस लड़की को हमेशा से जानता था।

वह उस दिन भी बात छुपा गया जब नयना ने उस लड़की के विषय में पूछा था।


भूषण प्रसाद सुबह जल्दी तैयार होकर काम पर जल्दी निकल गये थे क्योंकि वर्कर्स छुट्टी से वापस आ गये थे इसलिए खुदाई का काम इतने दिनों से रुका पड़ा था वो सुचारू रूप से चलने लगे और सबसे बड़ी बात शास्त्री जी ने दोपहर तीन बजे आने का वादा किया था । उन्हें भी आना था तो भूषण प्रसाद का घर पर उस समय रहना भी जरूरी था।अब ये बात तो स्वत ही पता चल गयी थी कि उस कमरे में जो गुप्त दरवाजा है वो कहां जाता है ।नहीं तो भूषण प्रसाद ने यही निश्चय किया था कि कल राज और कुछ कर्मचारियों को लेकर उस दरवाजे में जाकर देखेंगे कि ये रास्ता कहां जाता है।


राज की भी रात की नींद थी इसलिए वह भी थोड़ा बहुत खाकर दोबारा रजाई में दुबक गया।वैसे भी कल जो मंजर देखा था उससे राज का सिर घूम रहा था उसने नयना को यह बोला कि शास्त्री जी आयें तो मुझे जगा देना।



शास्त्री जी समय के बहुत पाबंद थे ठीक तीन बजे राज की कोठी के यार्ड में खड़े थे भूषण प्रसाद और राज उनका बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।जैसे ही वो आये तीनों स्टडी रूम की ओर जाने लगे क्योंकि वो डायरीनुमा किताब वहीं उस संदूकची में ही रखी थी ।नयना ने जब शास्त्री जी को देखा तो वह भी उनके साथ हो ली।

अब तीनों सामने सोफे पर बैठे थे और उनके सामने शास्त्री जी एक सोफे पर बैठे थे संदूकची उनके सामने मेज पर रखी थी ।नयना की तरफ इशारा करके शास्त्री जी बोले,,


"आज बिटिया भी आई है ये कहानी जानने। बड़ी ही दुखभभरी कहानी है चंद्रिका की ।"


"जी शास्त्री जी ये राज की बचपन की दोस्त हैं । बहुत हक रखती है राज पर ।जब इसे पता चला कि राज के जीवन में क्या क्या घटित हो गया है तो इसे भी जानने की उत्सुकता हुई।" भूषण प्रसाद रो में बह कर बोल गये।


*ऐसा और क्या घटित हो गया है तुम्हारे जीवन में राज ?"



"शास्त्री जी ये लड़की जो चंद्रिका का रूप धरकर मेरे पास आती है ।वो वास्तव में हमारे माली किशनलाल की बेटी परी है।और कल रात बड़ी ही अजीब घटना घटित हुई ।" यहकहकर राज ने कल रात वाली सारी बातें शास्त्री जी को बता दी।जिसे सुनकर शास्त्री जी जैसे अंगड़ाई सी लेने लगे और ऐसे लग रहा था जैसे वो किसी से बात कर रहे थे।


"अच्छा….. अच्छा मैं समझ गया ।वो तुम ही हो ।"


ऐसे लग रहा था जैसे शास्त्री जी के सामने कोई बैठा है । उन्हें देखकर भूषण प्रसाद बोले,"शास्त्री जी कौन है आपके सामने?"


"वहीं जिसकी कहानी मैं तुम लोगों को सुना रहा हूं । दरअसल मैं सिर्फ एक माध्यम हूं असल में वो लड़की मतलब चंद्रिका ही सब कुछ बता रही हैं।"


एक बार को भूषण प्रसाद को लगा कि शास्त्री जी कुछ ज्यादा ही शो आफ कर रहे हैं ऐसा कभी होता है ।माना कुछ सूझ जाए लेकिन राज नर्तकी चंद्रिका ही सामने बैठकर सब बता रही हैं? ऐसा कैसे ……"


शास्त्री जी ने किताब को हाथ में लिया और फिर से उस कहानी को सुनाने लगे जो बरसों पहले दो प्रेम करने वालों के बीच बीती थी।…….


चंद्रिका पागलों की तरह देवदत्त को प्यार करती थी वह उसके साथ घर बसाने के सपने देख रही थी । क्यों कि उसने ये दर्द भोगा था ।उसके पिता का पता नहीं था सब बचपन में उसे हरामी की जनी कहते थे वह बचपन से मन में ठान कर बैठी थी कि वह जिससे प्यार करेंगी उसी से शादी करेंगी और उसके बच्चों के भी पिता होंगे। कोई उन्हें हराम के जने नहीं कहेगा।


एक अलग तरीके का प्यार था उन दोनों के बीच,एक कशिश थी ।जब तक एक दूसरे को देख नहीं लेते थे तब तक आत्मा को चैन नहीं मिलता था।एक बार चंद्रिका का तबीयत ख़राब हो गयी वो दरबार में नहीं आ पायी।उस दिन मेहमानों का मनोरंजन उसकी मां कनक बाई ने किया। देवदत्त शाम तक उसकी बांट जोहता रहा जब चंद्रिका नहीं आई तो देवदत्त से कुछ भी सृजन नहीं हुआ और वो पागलों की तरह अपनी चंद्रिका को देखने के लिए बेचैन हो उठा और उस दिन बरसात ऐसे हो रही थी जैसे कहर बरसा रहा हो। पहाड़ी इलाका , पत्थर सरक रहे थे लेकिन देवदत्त ने अगर चंद्रिका से मिलने का ठान लिया तो ठान लिया।वहम सब बाधाओं को पार करके लाल हवेली पहुंच गया ।अब तक कनक बाई को इन दोनों के प्यार की खबर नहीं थी ।राज शिल्पी को यूं आया देखकर कनक बाई ने उन्हें हवेली में बुलाया और आने का कारण पूछा।


देवदत्त पहले तो चुप रहा लेकिन बाद में वह बोल ही गया 

"मैं आप की बिटिया चंद्रिका से बहुत प्यार करता हूं और उससे विवाह करना चाहता हूं।आज वो महल नहीं आई तो मन बेचैन हो गया और उससे मिलने चला आया क्यों कि उसके बिना मेरा सृजन अधूरा है।"



कहानी अभी जारी है………..





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1 Comments

Gunjan Kamal

16-Aug-2023 01:41 PM

👏👌🙏🏻

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